"एक शिकन के उभार तो देखो
हर सितम समेट लेती है
न रोती है, न मुस्कुराती है
बस एक लकीर सी खींच देती है
हम भी हर गम पलकों पे उठाकर
इसी के दामन में छुप जाते हैं
पलकों में आंसू भींच लेते हैं और....
बस एक शिकन में सिमट जाते हैं."
अगर सितम करने का हक़ मुझे होता....
Written by Chanda
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